स्कूलों में खेल मैदान क्यों नहीं होते?

देश में हमेशा खेल संस्कृति का रोना रोया जाता है और ग्रास रुट स्तर पर खेलों को बढ़ावा देने की बात कही जाती है. लेकिन कितनी बड़ी विडंबना है कि देश में छह लाख 50 हजार स्कूलों में खेल के मैदान नहीं हैं. हर जगह पर स्कूल तो कुकुरमुत्तों की तरह उग आते हैं लेकिन बच्चों को जो खेल का मैदान चाहिए उसकी चिंता कोई नहीं करता. यह बात किसी सर्वेक्षण से निकल कर सामने नहीं आई है बल्कि देश के खेल मंत्री विजय गोयल ने खुद यह बात कही है.

गोयल ने खेलों को स्कूली शिक्षा के साथ जोड़ने पर जोर देते हुए कहा कि देश में 6,50,000 स्कूलों में खेल मैदान नहीं है. हम इस पर काम कर रहे हैं. राज्य सरकारों से बात चल रही है क्योंकि खेल राज्य सूची का विषय है. हम खेलों को समवर्ती सूची में लाने का भी काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि खेल और फिज़िकल शिक्षा को विद्यालयी शिक्षा के साथ एकीकृत करने के संबंध में कक्षा एक से दस तक के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने की दिशा में मानव संसाधन विकास मंत्रालय और खेल विभाग मिलकर संयुक्त रूप से एक कमिटी का गठन कर चुके हैं.

स्कूल जाने वाले बच्चों के स्वास्थ्य स्तर को मापने के लिए राष्ट्रीय शारीरिक स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किया गया है. राज्यों में सरकारें आती हैं और चली जाती हैं. पाठ्यक्रम भी बदलते रहते हैं लेकिन बच्चों को खेलों के नाम पर कुछ नहीं मिलता. स्कूल से ही प्रतिभाएं मिलती हैं और प्रतिभाएं सामने लाने के लिए खेल मैदान जरूरी हैं.


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