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फिल्म समीक्षा: रंग बिरंगी

अपनी व्यस्तता में लोग भूल जाते हैं कि अपने घर एवं जीवनसाथी को समय देना कितना जरूरी है. हृषिकेश मुख़र्जी द्वारा निर्देशित रंग बिरंगी (1983) भी मुंबई में रह रहे ऐसे ही जोड़ों की कहानी है.

अमोल पालेकर, परवीन बॉबी, दीप्ति नवल, फ़ारुख शेख, उत्पल दत्त, ओम प्रकाश, देवेन वर्मा जैसे कलाकारों द्वारा अभिनीत यह सिनेमा आपके सामने एक सवाल लेकर आएगा कि क्या जलन और विश्वास दोनों ही प्यार के लिए ज़रूरी है या नहीं?

कमलेश्वर की कलम से पिरोई हुई यह कहानी है अजय शर्मा (अमोल पालेकर) की, जो अपने काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि अपनी बीवी निर्मल शर्मा (परवीन बॉबी) को समय ही नहीं दे पाते. ऐसे में उनके दोस्त रवि कपूर (देवेन वर्मा) ‘पति पत्नी और वो’ की तर्ज़ पर उनके जीवन में खोए हुए प्यार को जगाने की कोशिश करते हैं, और बन जाते हैं नाटक के कथाकार.

अब कैसे इस कथाकर द्वारा कहानी में अजय की सेक्रेटरी अनीता सूद (दीप्ति नवल) और उनके प्रेमी प्रोफ़ेसर जीत सक्सेना फंस जाते हैं, यह आपको कथाकार फिल्म के जरिये ही दिखाएंगे.

जो विषय इस कहानी को हास्यप्रद बनाता हैं वो है प्यार में जलन एवं विश्वास का संतुलन, जहां पति-पत्नी एक दूसरे के हर कदम पर विश्वास करें, जले नहीं.

इस सिनेमा में ए.सी.पी. धुरंधर भटवडेकर (उत्पल दत्त) का किरदार उस समय की सोच पर भी व्यंग्य कसता है जिसके अनुसार भारत में अशिष्टता और हिंसा का जिम्मेदार सिर्फ हिन्दी सिनेमा को बताया जाता था.

उत्पल दत्त, ओम प्रकाश, देवेन वर्मा के हास्य किरदार, अमोल पालेकर के भोले व्यक्तित्व एवं परवीन बॉबी और दीप्ति नवल की सशक्त महिला के किरदार को आपसे रूबरू कराने के लिए यह फिल्म आपका इंतज़ार कर रही है, देखिएगा ज़रूर.


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