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ऑस्कर से रह गई थी लंचबॉक्स

भारतीय सिनेमा के बेहद प्रतिभाशाली और स्वाभाविक अभिनेता इरफ़ान खान का 29 अप्रैल को मुंबई में निधन हो गया लेकिन वह अपने अभिनय की छाप दर्शकों के मन में छोड़ गए हैं.

भारतीय सिनेमा के इतिहास में बलराज साहनी के बाद यदि किसी को स्वाभाविक अभिनेता माना जाए तो वह इरफ़ान थे.

इरफ़ान ने अपने करियर में कई यादगार और शानदार फिल्में कीं लेकिन उनकी लंचबॉक्स फिल्म उनके संजीदा अभिनय के लिए हमेशा याद की जाएगी.

यह वह फिल्म थी जो ऑस्कर में विदेशी फिल्म की श्रेणी में जा सकती थी और ऑस्कर भी जीत सकती थी.

लेकिन जैसा भारतीय फिल्मों में होता आया है कि ऑस्कर के लिए ऐसी फिल्म भेज दी जाती है जिसमें इस पुरस्कार की होड़ में शामिल होने का दम नहीं होता है.

लंचबॉक्स ने 2013 में कांस महोत्सव में अपना पदार्पण किया था और इसे 86वें ऑस्कर समारोह में विदेशी भाषा वर्ग में भारत की तरफ से प्रविष्टि का दावेदार माना जा रहा था क्योंकि आलोचकों ने इस फिल्म को जबरदस्त ढंग से सराहा था.

जनवरी 2014 में जब भारत की प्रविष्टि का चुनाव हुआ तो लंचबॉक्स की जगह द गुड रोड को ऑस्कर के लिए भारतीय प्रविष्टि चुना गया.

लंचबॉक्स मुंबई में दो अनजान लोगों की कहानी थी जो अंत तक अनजान ही रह गए. इसे अगर एक खूबसरत प्रेम कथा कहा जाए तो गलत नहीं होगा.

इसमें एक महिला है जो अपनी शादी से खुश नहीं है. वह अपने पति के लिए रोज लंच बनाती है लेकिन लंचबॉक्स अनजाने में किसी दूसरे व्यक्ति के पास जाता रहता है जो एक विधुर है. यह विधुर इरफ़ान हैं.

इस तरह लंचबॉक्स में छोटी पर्चियों के माध्यम से दोनों के बीच संवाद चलता रहता है और उनके बीच एक अनजान सा लेकिन खूबसूरत रिश्ता बन जाता है.

उनके बीच प्यार पनपने लगता है. किसी समय बासु चटर्जी ऐसी खूबसूरत फिल्में बनाया करते थे जो दिल को अंदर तक छू जाती थीं. लंचबॉक्स ऐसी ही एक खूबसूरत फिल्म थी.

यही वजह थी कि इसे आलोचकों ने पसंद किया था और यह पश्चिम में भी पसंद की जाती.

इसके अधिकार सोनी पिक्चर क्लासिक्स ने लिए थे और यदि यह ऑस्कर के लिए जाती तो सोनी का साथ इसके लिए ऑस्कर बिरादरी में पूरी लॉबी लगाता और भारत का ऑस्कर पाने का सपना पूरा हो जाता.

आज इरफ़ान हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी यादगार फिल्में हमेशा उनकी याद दिलाती रहेंगी. 


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