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फिल्म समीक्षा: बेताब

सनी देओल और अमृता सिंह की फिल्म ‘बेताब’ वर्ष 1983 में रिलीज़ हुई थी. इस फिल्म का निर्देशन राहुल रवैल ने किया था और निर्माता थे बिक्रम सिंह दहल.

बेताब कहानी थी दो युवा, सनी और रोमा की जो बचपन की मित्रता से यौवन के प्रेम प्रसंग में कदम रखते हैं. सनी और रोमा गहरे मित्र होते हैं किंतु सनी के घर आई अकस्मात गरीबी के कारण दोनों अलग हो जाते हैं.

कहानी में मोड़ तब आता है जब कई सालों बाद दोनों की मुलाक़ात होती है और शुरूआती झगड़ों के बाद दोनों की ज़िन्दगी में प्यार दस्तक देता है.

फिल्म बाकी प्रेम कहानियों की तरह हीरो-हीरोइन में अमीरी गरीबी का फर्क ज़रूर दर्शाती है, फिर भी इस फिल्म में नवीनता का भाव बेहद खूबसूरती से झलकता नज़र आता है.

बेहतरीन अदाकारी के आलावा जो बेताब को यादगार बनाता है, वह है फिल्म का सदाबहार संगीत. फिल्म का संगीत दिया था राहुल देव बर्मन ने और बोल लिखे थे आनंद बक्शी ने.

फिल्म के गाने जैसे, ‘जब हम जवां होंगे’ एवं ‘पर्वतों से आज मैं टकरा गया’, आज भी बेहद लोकप्रिय हैं.  

सनी देओल और अमृता सिंह का साथ देते फिल्म में नज़र आए निरुपा रॉय, जिन्होंने सनी देओल की मां का किरदार निभाया, और शम्मी कपूर, जो अमृता सिंह के पिता के किरदार में नज़र आए.

फिल्म में अन्नू कपूर, प्रेम चोपड़ा भी उम्दा काम करते दिखे. आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि फिल्म में सनी देओल के बालपन का किरदार निभाने वाले और कोई नहीं, गायक सोनू निगम थे. बेताब फिल्म शायद पहली हिंदी फिल्म है जिससे U/A वर्ग के अंदर रखा गया था. 

बेताब को समीक्षकों और जनता, दोनों से बेहद प्यार मिला और पुरस्कार की कई श्रेणियों में यह नामांकित भी हुई, लेकिन इसे कोई भी अवार्ड नहीं मिला.

यह फिल्म सनी देओल और अमृता सिंह, दोनों की ही पहली फिल्म थी. दिलचस्प यह है कि अमृता की बेटी, सारा खान और सनी देओल के बेटे, करन, दोनों ने ही अब फिल्मों में डेब्यू कर लिया है.


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