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फिल्म समीक्षा: अंदाज़

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अंदाज़ फिल्म में आप पुराने ज़माने के दो महानायक दिलीप कुमार और राज कपूर को एक ही सिनेमा में देख सकते हैं.

साल 1949  में आई अंदाज़ में दिखेगी नर्गिस की सादगी, राज कपूर का नटखटपन और दिलीप कुमार की संजीदगी.

इस सिनेमा में आप लता मंगेशकर और मुकेश की जोड़ी को भी सुन पाएंगे.

महबूब खान द्वारा निर्देशित यह सिनेमा दिलीप कुमार, नरगिस दत्त और राज कपूर के बीच प्रेम त्रिकोण की कहानी है.

यह कहानी है नीना (नरगिस दत्त) की जिसके पिता (मुराद) बहुत अमीर हैं जिसके कारण नीना के रहन-सहन का अंदाज़ थोड़ा अलग है.

एक दिन घुड़सवारी करते समय उसका घोडा बिगड़ जाता है, तब उसे दिलीप (दिलीप कुमार) मरने से बचाता है.

इस एहसान का क़र्ज़ अदा करने के लिए नीना फिर दिलीप को घर पर बुलाती है, जहां वह उसकी आवाज़ की दीवानी हो जाती है.

नीना अब दिलीप को अपना दोस्त मानने लग जाती है, पर उसके पिता को नीना का यह किसी अज़नबी को दोस्त बनाने का अंदाज़ पसंद नहीं आता.

वह नीना को चेताते भी हैं, पर नीना नहीं समझती और अपने पिता की मौत के बाद दिलीप को आधी ज़मीन का हिस्सेदार बना देती है.

वहीं दिलीप नीना की दोस्ती को प्यार समझने लगता है.

कहानी में मोड़ तब आता है जब नीना का प्यार राजन, विदेश से पढ़ाई कर के वापस आता है.

नीना और राजन शादी कर लेते हैं. उन दोनों का प्यार देखकर दिलीप को झटका लगता है और वह एक दिन नीना को सब बता देता है.

नीना को दिलीप की कही हुई वह बात बहुत दुःख देती है क्योंकि उसने सिर्फ राजन को अपना प्रेम और भगवान माना है.

नीना और राजन की बच्ची हो जाती हैं, जिसके बाद एक दिन गलती से नीना राजन को दिलीप समझ कर सब बोल देती हैं.

अब राजन को नीना पर शक हो जाता हैं. यह शक नीना, राजन और दिलीप के रिश्ते एवं ज़िन्दगी को कितना बदल देगा यह देखने के लिए ज़रूर देखिए अंदाज़.

कहानी में कुकू का ज़ोरदार नृत्य भी हैं जो आपका मन मोह लेगा.

कहानी का अंत थोड़ा दुखदाई हैं और हो सकता हैं कि आप अंत से सहमत ना हों, पर अंत आपको सोचने के लिए मज़बूर करेगा.


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