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फिल्म समीक्षा: मासूम

बच्चे भगवान का रूप होते हैं, यह बात हम सब जानते हैं. उनकी मासूमियत हमेशा ही हमारा मन मोह लेती है. उनका चंचल मन भी हमें खूब भाता है. पर अगर उसी बच्चे पर नाजायज होने की मोहर लग जाए, तो समाज उसकी मासूमियत को देख ही नहीं पाता. वैवाहिक जीवन, विवाहेतर संबंध जैसे विषय पर बात करती है फिल्म ‘मासूम’ (1983).

शेखर कपूर द्वारा निर्देशित यह सिनेमा जितना अपनी कहानी को लेकर मशहूर है उतना ही अपने गानों को लेकर जिन्हें आर.डी. बर्मन ने सजाया है. 

नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी, सुप्रिया पाठक, उर्मिला मातोंडकर, जुगल हंसराज द्वारा अभिनीत यह सिनेमा कहानी है डी.के. (नसीरुद्दीन शाह) और इंदु (शबाना आजमी) की जिनकी दो बेटी हैं रिंकी (उर्मिला मातोंडकर) और मिनी.

डी.के. ने अपनी बीवी को भावना (सुप्रिया पाठक) के साथ अपने नाजायज संबंध और उससे हुए बच्चे राहुल (जुगल हंसराज) के बारे में कुछ नहीं बता रखा है. प्रवीन भट्ट के छायांकन से संजोये हुए इस सिनेमा में मोड़ तब आता है जब भावना की मृत्य हो जाती है और डी.के. को राहुल को अपने साथ रखना पड़ता है.

पति के दिए हुए धोके से इंदु टूट जाती है और राहुल को कभी भी अपना नहीं पाती. राहुल को डी.के. के साथ अपना रिश्ता नहीं पता होता. वहीं इंदु को राहुल में अपने पति के साथ कमजोर रिश्ता दिखता है.

राहुल रिंकी और मिनी के साथ घुल-मिल जाता है, तभी बीवी के साथ हो रही अनबनी को दूर करने के लिए डी.के. उसे बोर्डिंग स्कूल छोड़ देता है.

क्या कभी राहुल को डी.के. के साथ अपना रिश्ता पता चलेगा? क्या इंदु राहुल को अपना पाएगी? रिश्तो में आई खट्टास, प्यार को तरसते बच्चे के दुख एवं उन सबसे बड़ा मां की ममता को देखने के लिए ज़रूर देखिएगा मासूम.


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