कोरोना और करोड़ लोगों का देश

कोरोनावायरस के खतरे की घंटी बजने के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्र को तीन बार संबोधित कर चुके हैं. अपने संदेशों में वे जनता को बांधे रखने की पूरी कोशिश करते हुए देखे जा रहे हैं. लेकिन, मोदी सवालों के घेरे से बाहर नहीं हैं.

कब-कब किया प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित

प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना महामारी के बीच पहली बार 19 मार्च को रात 8 बजे राष्ट्र के नाम संदेश दिया था. तब उन्होंने 22 मार्च को  ‘जनता कर्फ्यू’ का पालन करने का ‘आग्रह’ किया.

पुनः 24 मार्च को वे रात 8 बजे टीवी पर आए. उन्होंने उसी रात 12 बजे से 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की – 130 करोड़ जनता वाले देश को मात्र चार घंटे में अचानक ठप्प हो जाने का नोटिस.

मोदी 3 अप्रैल को रात की जगह सुबह 9 बजे टीवी पर दिखे, जब एक वीडियो संदेश के जरिये वे लोगों से फिर मुखातिब हुए. उन्होंने 5 अप्रैल को रात 9 बजे 9 मिनट तक लाइट बुझा कर लोगों को अपनी बालकनी व दरवाज़े पर दीया, मोमबत्ती, टॉर्च या मोबाइल फ़्लैश जलाने के लिए कहा.

लॉकडाउन के दौरान 29 मार्च को प्रधानमंत्री ने रेडियो पर ज़ारी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में लॉकडाउन के कारण लोगों को हुई परेशानियों के लिए माफी भी मांगी.

लॉकडाउन में गरीबों में भय का माहौल  

अपने 24 मार्च के संबोधन में मोदी ने कहा था, “हिंदुस्तान को बचाने के लिए 21 दिन का यह लॉकडाउन बेहद जरूरी है. यह जनता कर्फ्यू से ज्यादा सख्त होगा और यह एक तरह से कर्फ्यू ही है.”

देश में सरकारी नौकरी कितनों की है यह सरकार भी जानती है. प्राइवेट रोज़गार पर कितने भारतीय निश्चिंत रहते हैं वह किसी से छिपा नहीं. दिहाड़ी मज़दूर रोज़ कमाते हैं, रोज़ खाते हैं तो स्वरोज़गार करने वाले सिर्फ अपने स्वाबलंबन की खाते हैं.

हर रोज़ मजदूरी करने वाले, गाड़ियां चलाने वाले, घरों-दफ्तरों में कुछ घंटों की नौकरी करने वाले, रिक्शे-ठेले वाले, सड़कों पर सामान बेचने वाले, दर्ज़ी, मोची, कैसे जिंदा रहें, ये सोचना आज सबसे ज्यादा ज़रूरी है.

विपक्ष कांग्रेस का कहना है कि सरकार की ओर से कोरोना के ख़िलाफ़ जो रणनीति अपनाई गई वह काफी देर से लिया गया कदम है. कांग्रेस ने एक कार्टून के माध्यम से सरकार पर यह भी आरोप लगया है कि अपनी नाकामी से बचने के लिए केंद्र सरकार जनता को भीड़ समझकर हांक रही है, और जनता को भावनाओं में उलझाकर, खुद अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है.

देश के उच्च व मध्यम वर्ग पर लॉकडाउन का कितना प्रभाव हो रहा है उसकी रेटिंग इस बात से पता चलती है कि वह तमाम जोक्स व चैलेंज में हिस्सा ले रहा है जबकि देश के बड़े हिस्से को सोने-खाने के लिए लाले पड़े हैं. गरीब के पास इतने संसाधन नहीं कि वह खुद को बंद करके रखे या फिर 20 सेकंड तक बेसिन के बहते हुए पानी में साबुन से हाथ धोता रहे.

पत्रकार अभिषेक पराशर के अनुसार सिर्फ दीप बत्ती दरवाजे पर रख देने से सामूहिकता का परिचय नहीं दिया जाता. लोग एक दूसरे की मदद करें, सुनिश्चित करें कि किसी ज़रूरतमंद को कोई तकलीफ नहीं हो.

वे पूछते हैं सामूहिकता तब कहां गई थी, जब लोग पैदल अपने घरों की तरफ निकल पड़े थे, मकान मालिकों ने प्रवासी मजदूरों को भगाना शुरू कर दिया था, और जमाखोरी करने वाला हर व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा सामान हसोत कर अपने घर में रख लेने की फिराक में था.

युवा राजनीतिज्ञ विवेक चंदन का कहना है कि ‘इस सरकार ने घरों में मोमबत्ती जलाने व टॉर्च चमकाने के लिए दो दिन का नोटिस दिया जबकि लॉकडाउन के लिए सिर्फ चार घंटे की मोहलत दी.’

नेहल शाह: ‘ये कैसा सफर है जो थमता नहीं’. फोटो: पार्थो प्रोतिम सरकार.

हिंदू-मुस्लिम करने से भी नहीं बाज़ आ रहे लोग

कोरोना ना हिंदू है, ना मुसलमान; बल्कि ये महामारी तो मुस्लिम के लिए कब्रिस्तान और हिंदू के लिए शमशान है. फिर भी कोरोना के साथ जंग में हिंदू-मुस्लिम खींचातानी दिखी है जिसकी जितनी निन्दा की जाए कम है. भला मजहब ढूंढने वाले कोरोना वायरस का टीका क्या खोजेंगे?

लॉकडाउन के दौरान अच्छी खबरें भी आ रही हैं

बंदी के समय देश में प्रदूषण का स्तर इतना कम हो गया है कि 30 साल बाद जालंधर से हिमालय की वादियां दिखने लगी हैं. इतना ही नहीं लॉकडाउन के कारण हत्या, अपहरण, रंगदारी, सेंधमारी, महिलाओं से छेड़छाड़, एक्सीडेंट में मौत जैसे मामले भी नहीं दिख रहे हैं.

तो क्या यह समझना होगा कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन यानी औद्योगिक क्रांति ने कितना कबाड़ा किया है प्रकृति का. लॉकडाउन ने शायद यह मौका दिया है प्रकृति से वापस जुड़ने का.

स्तंभकार चंदन कुमार चौधरी के अनुसार लॉकडाउन के कारण गंगा नदी की स्वच्छता में बड़ा सुधार हुआ है. देश में प्रदूषण भी काफी कम हो गया है. आसमान में तारे टिमटिमाते हुए नजर आने लगे हैं. लोगों की सुबह चिल्ल-पों और शोर-शराबे से नहीं, बल्कि पक्षियों की चहचहाहट से होने लगी है.

इतिहास के झरोखे से देखें तो यह नारा कुछ साल पहले इन्हीं किसी दिन लांच हुआ था – अच्छे दिन आने वाले हैं.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी