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अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास

Ram Mandir Ayodhya Shri Ram Janmbhoomi Teerth Kshetra

 

अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के मुहूर्त को लेकर विवाद छिड़ गया है.

द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने शिलान्यास के लिए निर्धारित तिथि को अशुभ बताकर, धर्माचार्यों के बीच बहस शुरू करा दी है.

पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के करीब नौ महीने बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 5 अगस्त 2020 को मंदिर की नींव रखने वाले हैं.

ज्योतिष गणना के हिसाब से यह दिन उत्तम नहीं है. जो समय चुना गया है उसमें भी मात्र 32 सेकंड के लिए शुभ मुहूर्त बनने की गुंजाईश है.

उन्हीं 32 सेकंड में मोदी नींव की ईंट रखेंगे, ऐसा बताया भी जा रहा है.

पर क्या भारत में पहली बार ज्योतिषीय मतों पर इतना ज़ोर दिया जा रहा है?

दिन-रात के बीच निकला था आजादी का मुहूर्त

भारत में इसका इतिहास तो आजादी के पहले से शुरू हो जाता है.

इसकी कड़ी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से जुड़ी बताई जाती है.

ज्ञात हो कि लार्ड माउंटबेटन भारत की आजादी की प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी करके लंदन लौट जाना चाहते थे.

जानकारों की मानें तो भारत के नेताओं की ओर से इस प्रक्रिया के लिए कोई जल्दी नहीं दिख रही थी.

हारकर माउंटबेटन को कहना पड़ा कि 14 या ज्यादा से ज्यादा 15 अगस्त तक इसे पूरा कर लिया जाए.

पाकिस्तान ने तो 14 अगस्त को ही अपनी स्वाधीनता के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए थे और खुद को आजाद घोषित कर लिया.

पर नेहरू का ज्योतिष शास्त्र पर बड़ा विश्वास था. उन्हें तलाश थी एक अच्छे मुहूर्त की जिसमें भारत की स्वतंत्रता को स्वीकार किया जाए.

उज्जैन के पं. सूर्यनारायण व्यास और सोलन के पं. हरिदेव शर्मा शास्त्री उस समय के सबसे प्रकांड ज्योतिषी माने जाते थे.

नेहरू ने दोनों से ही एक शुभ मुहूर्त निकालने को कहा जब भारत को आजाद घोषित किया जाए.

ग्रहों की स्थिति ऐसी थी कि अगले दो दिनों तक कोई उत्तम मुहूर्त ही न जान पड़ता था.

पाकिस्तान द्वारा 14 अगस्त को आजादी स्वीकार लेने के बाद भारतीय नेताओं पर दबाव था. इसलिए बीच का रास्ता निकाला गया.

हिंदू पंचांग के अनुसार 14 की मध्य रात्रि और अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार 15 अगस्त की रात्रि को 00.00 बजे अभिजित मुहूर्त में नेहरू ने भारत को आजाद घोषित किया.

तब नक्षत्रों में पुष्य उदित था. भारत को जन्म के समय शनि की दशा मिली और लग्न में राहू विराजमान थे.

लग्न को व्यक्तित्व का द्योतक माना जाता है. ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की, कि राहू के लग्न में होने से देश में भ्रष्टाचार की समस्या आ सकती है.

शनि की दशा के कारण देश की शुरुआती वर्षों में तरक्की बहुत धीमी रहेगी और देश लंबे समय तक अनिर्णय की स्थिति में रहेगा, सही-गलत के बीच उलझा हुआ.

और हुआ भी कुछ ऐसा ही.

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बहुत से ऐसे फैसले लिए गए जिनका खामियाजा आज भुगतना पड़ रहा है.

ज्योतिष और कर्मकांड से जुड़ी एक और घटना

1962 की लड़ाई में भारत की हार हो रही थी और विदेशी सहायता भी भारत को नहीं मिल पा रही थी.

नेहरु घबरा गए. उन्हें लगता था कि कहीं चीन उत्तर-पूर्व से आगे बंगाल तक न चढ़ आए. उन्होंने ज्योतिषियों और कर्मकांडियों से संपर्क कर इसका निदान बताने को कहा.

सुझाव आया कि माता धूमावती की आराधना की जाए.

विधवा वेष में रहने वाली धूमावती देवी दसमहाविद्या देवियों में से हैं. पीतांबरा त्रिपुर सुंदरी राजसत्ता की देवी हैं तो धूमावती अपराजिता हैं.

युद्ध जैसी विभीषका में उनकी साधना से परिणाम पलट जाते हैं और साधक कमजोर होने पर भी रण में विजय प्राप्त करता है.

कहा जाता है कि नेहरू ने इसी पीतांबरा पीठ प्रांगण में 51 कुंडीय महायज्ञ करवाया था और ग्यारहवें दिन जब अंतिम आहुति दी जा रही थी, चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुलानी शुरू की थी.

श्रीराम के राज्याभिषेक का मुहूर्त प्रासंगिक

ज्योतिष के 18 आदि गुरुओं में वशिष्ठ का नाम भी आता है. वशिष्ठ रघुवंशियों के कुलगुरू भी थे.

उन्होंने श्रीराम के राज्याभिषेक का मुहूर्त निकाला था. उसी मुहूर्त में श्रीराम को वनवास हो गया था.

शायद हमारे पूर्वज, हमारे आराध्य श्रीराम हमें यही शिक्षा देना चाहते हों कि गणनाएं हर बार सही ही हों, यह जरूरी नहीं.

या यूं भी कह सकते हैं कि यदि वह गणना सही निकल जाती तो श्रीराम एक सूर्यवंशी राजा से अधिक न माने जाते.

उसी वनवास ने उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम, भगवान श्रीराम बनाया.


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