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पुस्तक समीक्षा: कौवों का हमला

‘कौवों का हमला’ युवा लेखक अजय कुमार का पहला नॉवेल एडवेंचर और थ्रिलर है. कहानी में भाई-बहन की नोक-झोक गुदगुदाने वाली है. साथ ही बच्चों का जानवरों के लिए अटूट प्यार और विषम परिस्थितियों में रास्ते तलाश करना बहुत ही भावुक और दिलचस्प है.

इस नॉवेल के मुख्य पात्र दो भाई बहन हैं, आठ साल का उन्नत और चार साल की आशी. साथ में है इनका दोस्त मूलचंद, एक कुत्ता, जो इनकी बिल्डिंग के बाहर सड़क पर रहता है.

एक बार बच्चों ने देखा कि कौवे एक मछली वाली की मछलियां लूटने वाले थे. बच्चों ने मूलचंद के साथ मिलकर कौवों से मछलियों को बचा लिया लेकिन कौवों से दुश्मनी मोल ली. कौवे बदला लेने के लिए बच्चों और मूलचंद के पीछे पड़ गए, जो उन्होंने सोचा नहीं था.

उन्नत और आशी की मम्मी को घर में कुत्ता रखना पसंद नहीं था. और सड़क के कुत्ते का तो सवाल ही नहीं उठता. मूलचंद को कौवों से बचाने के लिए उसे घर ला कर रखना जरूरी था.

बच्चे अपने पापा की मदद से मूलचंद को ना सिर्फ घर ले आए बल्कि मम्मी को भी मना लिया– मगर सिर्फ कौवों का ख़तरा ख़त्म होने तक.

कौवों ने इतनी जल्दी हार नहीं माननी थी, वो उन्नत और आशी का घर ढूंढने में लगे हुए थे. जो उन्होंने ढूंढ भी लिया और वहां पहुंच भी गए.

कौवों का हमला इतना खतरनाक था कि उन्नत और आशी काफी मुश्किल से खुद को और मूलचंद को इस हमले से बचा पाए.

उन्नत के मम्मी-पापा को कौवों के खौफ से बचने का एक ही तरीका समझ आया, वो लोग कुछ दिन के लिए घर छोड़ दें.  

वो सब घर से थोड़ी दूर एक रिसोर्ट पहुंच गए. परिवार ने चैन की सांस ली और बच्चों ने मूलचंद के साथ जम कर खेलने का मन बना लिया था.

मगर क्या कौवे इतनी आसानी से हार मान गए थे? बिलकुल नहीं, उसके बाद कौवों ने जो किया उससे सभी हैरान और परेशान हो गए.


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